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एक नहीं हर साल दिवाली आती है ।

एक नहीं हर साल दिवाली आती है । मानो तो हर रोज दिवाली आती है । मां लक्ष्मी का प्रकोप सदा रहती है । तभी तो हर घर में एक नई सी रौनक रहती है ।। प्रेम की धारा पल-पल में बरसती है । संपूर्ण मुसीबतों में इनकी निगाहें बस्ती है । मां की ममता अश्कों के मोती से निखरती है । यही मोती तो धन की वर्षा होती है ।। राम लौटे, रावण लंका द्वार से । अयोध्या सजी, एक सीता के प्यार से । मर्यादा लौटी, लौटी अयोध्या की संस्कार । लोग संग हुए प्रफुल्लित सा परिवार । बजे ताल मृदंगा हर पर्वत औ पठार । नाचे गाए झुमें हर जग औ संसार । तभी से हुआ निर्माण दीपावली का त्यौहार ।। मां धरती को ना कोड़ा जाए । मां धरती को ना कोड़ा जाए । मिट्टी के दीप नहीं, बल्कि आटे का दीप जलाया जाए ।। मां धरती को नाकोड़ा जाए । मां धरती को नाकोड़ा जाए ।। ना हाथों से ना फिजाओं में पटाखे फोड़ा जाए । पटाखों से खुद और दूसरों को भी बचाया जाए । पटाखों के शोर से ध्वनि प्रदूषण को बचाया जाए । बारूद ओं के झांसे पर्यावरण में छाती ना पहुंचाया ।। जाए ना पहुंचाया जाए ।। लेखक लाल बहादुर यादव